खंडहर (Khandhar ) वक्त के साथ मशीनों के पुर्जे घिस जाते है जाने कितने एहसासों में इंसान पिस जाते है। ज़िन्दगी का शिकार कुछ होते है इस कदर उबर कर भी कितने मिट्टी में मिल जाते है। शामोसहर बेफिक्री नहीं सबके नसीब में जीने का सामान जुटाने में ही मिट जाते है। ताकीद करता … Continue reading ग़ज़ल खंडहर | Khandhar
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