कितना आसाँ है कहना – भूल जाओ | Ghazal

कितना आसाँ है कहना – भूल जाओ ( Kitna aasan hai kehna – bhool jao )   इस दिल पे इतनी सी इनायत करना सुर्ख लबो में अलफ़ाज दबाये रखना खामोश रही आँखो पे सवालात न करना चंद रौशनदानो को भी घर में खुला रखना   हवा का रुख बदलेगा जमाना जब भी घर की … Continue reading कितना आसाँ है कहना – भूल जाओ | Ghazal