कुछ नज़ीरों से

कुछ नज़ीरों से ये बात आज भी साबित है कुछ नज़ीरों सेगये हैं शाह सुकूँ माँगने फ़क़ीरों से क़दम बढ़ाने से मंज़िल करीब आती हैउलझ रहा है तू क्यों हाथ की लकीरों से बहुत दिनों से है बरबाद ज़िन्दगी अपनीलड़ाई कितनी लड़ें अपने हम ज़मीरों से किया है सामना कुछ यूँ भी तंग दस्ती कालिबास … Continue reading कुछ नज़ीरों से