माँ पर नज़्म ( Maa par nazm ) पिलाकर अमृत का प्याला, क्यों तनाव में रहती है माँ। घर की सारी बला उठाकर फटी जिन्दगी सीती है माँ। क्यों अधिकार मिटा उसका, इतना दुःख सहती है माँ। जग की धुरी कहलाने वाली, क्यों वृद्धाश्रम जाती है माँ ? नभ-सी ऊँची, सागर-सी गहरी, जन्म सभी … Continue reading माँ पर नज़्म | Maa par Nazm
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