मन तू क्यूं ना माने ?

मन तू क्यूं ना माने ? मन तू ,क्यूं ना माने ?सबको क्यूं , अपना माने । सब होते ना ,यहां अपने ।कुछ होते, हैं बेगाने । बनते हैं, बहुत ही अपने ।दिखाते, नित नए सपने । फिर एक दिन, रंग दिखाते ।उनके नकाब, गिर जाते । वो प्रेम ,कहीं खो जाता ।ढूंढ़े से,नज़र ना … Continue reading मन तू क्यूं ना माने ?