मंज़िल की जुस्तुजू | Manzil ki Justuju
मंज़िल की जुस्तुजू ( Manzil ki Justuju ) मंज़िल की जुस्तुजू थी मैं लेकिन भटक गयामैं शहरे दिल को ढूँढने यूँ दूर तक गया आहट जो आने की मिली मुखड़ा चमक गयादिल याद कर के जल्वों को तेरे धड़क गया रिश्तों का ये पहाड़ ज़रा क्या दरक गयानाराज़ हो वो ख़त मेरे दर पर पटक … Continue reading मंज़िल की जुस्तुजू | Manzil ki Justuju
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