लाय बरस री | Marwadi poem

लाय बरस री   सन सन करती लूंवां चालै आकांशा सूं अंगारा चिलचिलाती दोपारी म बिलख रहया पंछी सारा   आग उगळती सड़कां तपरी बळती लाय पून चलै झूळस ज्यायै काळजो सगळो ताती रेतां पग बळै   गरम तवा सी तपै धरती च्यारूं चोखटां लाय बळै पाणी ढूंढता फिरै पंछीड़ा भरी दोपारी दिन ढळै   … Continue reading लाय बरस री | Marwadi poem