घर का पूत कुंवारा डौलै | मारवाड़ी रचना

घर का पूत कुंवारा डौलै   घर का पूत कुंवारा डौलै, करै पाड़ोस्यां क फैरा। नैणं मूंद अर आंधा होग्या, घर का बड़ा बडेरा। फिरै कुंवारों च्यारूं चौखटां, टाबर हुयो जवान। कठै बिंदणी कद मिल ज्यासी, लागै कोई तान। बण ठण निकलै बीच बजारां, फैशन नित लगाकै। घणों पसीनो खून बहावै, छोरो ल्यावै घणों कमाकै। … Continue reading घर का पूत कुंवारा डौलै | मारवाड़ी रचना