मजदूर पर कविता ( Mazddor par kavita ) दोजून निवाला सही से नसीब ना हुआ मेरे हाथो आज तेरा सुंदर महल बन गया अपना तो झोपड़े में गुजारा हो गया कभी ठंड मे ठीठुर कर मैं सो गया कभी बारिश में भीग कांपता रह गया, कभी पसीने से लथपथ हो गरम थपेड़े सह गया … Continue reading मजदूर पर कविता | Mazdoor
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