मीठी-मीठी ठण्डक | Kavita

मीठी-मीठी ठण्डक ( Meethi meethi thandhak )   कांप रहे सब हाथ पांव, मौसम मस्त रजाई का। देसी घी के खाओ लड्डू, मत सोचो भरपाई का।   ठिठुर रहे हैं लोग यहां, बर्फीली ठंडी हवाओं से। धुंध कोहरा ओस आई, अब ठंड बढ़ गई गांवों में   गजक तिल घेवर बिकती, फीणी की भीनी महक। … Continue reading मीठी-मीठी ठण्डक | Kavita