निभाए तो कैसे, कौन-सा रिश्ता? गुलिस्तां जो थे सुनसान हो गए।पंछी पेड़ों से अनजान हो गए॥ आदमी थे जो कभी अच्छे-भले,बस देखते-देखते शैतान हो गए॥ सोचा ना था कभी ज़ख़्म महकेंगे,गज़लों का यू ही सामान हो गए॥ निभाए तो कैसे, कौन-सा रिश्ता?दिल सभी के बेईमान हो गए॥ पूछते हैं काम पड़े सब हाल मियाँ,मतलबी अब … Continue reading निभाए तो कैसे, कौन-सा रिश्ता?
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