बंजारा की नौ नवेली कविताएँ

गली (एक) ————- एक जुलाहे ने बुनी थी दूसरी यह — ईट-गारे और घर-आंगन से बनी है . यह भी मैली है नुक्कड़ तक फैली है फटी है और सड़कों से कटी है . इसमें भी रंगों-से रिश्ते हैं और धागों-से अभागे लोग — जो जार जार रोते हैं ओढ़कर तार तार इसी चादर में … Continue reading बंजारा की नौ नवेली कविताएँ