पानी | Pani par Kavita

पानी! ( Pani )    समुद्र की आँख से छलका पानी, घटा टूटकर बरसा पानी। बढ़ा नदी में प्रदूषण ऐसा, फूट-फूटकर रोया पानी। मानों तो गंगा जल है पानी, नहीं मानों तो बहता पानी। पत्थर,पहाड़,पानी की संतानें, जनम सभी को देता पानी। आदमी है बुलबुला पानी का, सबका बोझ उठाता पानी। बनकर गुच्छा बूँद का … Continue reading पानी | Pani par Kavita