पतझड़ ( Patjhad ) दूसरों को पतझड़ देकर, लोग ख़्वाब देखते बाहर का; ख़ुद की ख़बर नहीं, इम्तिहान लेते हमारे सच्चे प्यार का । होंठों पर सजी झूठी मुस्कान अब रह गई किस काम की; जो दिल से ही निकाल दिया तुमने दर्द अपने दिलदार का । मिठास वो क्या जाने,जो चुरा … Continue reading पतझड़ | Patjhad
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