भ्रम | Poem bhram

भ्रम ( Bhram )   जो गति मेरी वो गति तेरी,जीवन भ्रम की छाया है। नश्वर जग ये मिट जाएगा, नश्वर ही यह काया है।   धन दौलत का मोह ना करना, कर्म ही देखा जाएगा, हरि वन्दन कर राम रमो मन,बाकी सब तो माया है।   यौवन पा कर इतराता हैं, बालक मन से … Continue reading भ्रम | Poem bhram