क़लम की ताक़त | Poem kalam ki taqat

 क़लम की ताक़त ( Kalam ki taqat )      क़लम चलती ही गई लेकिन स्याही ख़त्म ही नहीं हुई, चेहरे पर झुर्रियां और ऑंसूओं की लाईन सी बन गई। लोगों ने कहा क्या होगा लिखनें से पर हाथ रुकें नहीं, जब रूपए आने लगें तो हमारी तकदीर ही बदल गई।।   अब वही लोग … Continue reading क़लम की ताक़त | Poem kalam ki taqat