प्रकृति | Prakriti par Kavita

प्रकृति ( Prakriti )   इस प्रकृति की छटा है न्यारी, कहीं बंजर भू कहीं खिलती क्यारी, कल कल बहती नदियां देखो, कहीं आग उगलती अति कारी।   रूप अनोखा इस धरणी का, नीली चादर ओढ़े अम्बर, खलिहानों में लहलाती फसलें, पर्वत का ताज़ पहना हो सर पर।   झरनों के रूप में छलकता यौवन, … Continue reading प्रकृति | Prakriti par Kavita