पुलक उठा पुलक उठा रितुराज आते ही मन।नाप रहे धरती के पंछी गगन ।। पनघट के पंथ क्या वृक्षों की छाँवधरा पर नहीं हैं दोनों के पाँवलगा हमें अपना गोकुल सा गाँवकहा हमें सब ने ही राधा किशन।पुलक उठा –++++ प्रेम राग गाती हैं अमराइयांँउठती हैं श्वासों में अंगड़ाइयांँरास रंग करती हैं परछाइयांँभीग गया प्रेम … Continue reading पुलक उठा
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