.रौद्र रस ( Raudra Ras ) मन करता है कभी, ज़ुबां के ताले अब खोल दूँ, है दुनिया कितनी मतलबी जाके उनको बोल दूँ, उतार फेंकूँ उनके चेहरे से चापलूसी के मुखौटे, सच के आईने दिखा बदसूरती के राज़ खोल दूँ, कैसी हवस है यह पैसे की जो ख़त्म नहीं होती, चाहूँ तो सच … Continue reading .रौद्र रस | Raudra Ras Kavita
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