सभ्य समाज की गाली हूँ | Sabhya Samaj ki Gaali

सभ्य समाज की गाली हूँ  ( Sabhya samaj ki gaali hoon )   सांस रूकी तो मुर्दाबाद , सांस चली तो जिन्दाबाद ! चढ़ता नित नित सूली हूँ , मैं किस खेत की मूली हूँ  ! !   बंजारों की बस्ती में रहता हूँ , अपनी मस्ती में बहता हूँ ! जीवन की एक पहेली … Continue reading सभ्य समाज की गाली हूँ | Sabhya Samaj ki Gaali