विरह | Virah ke geet

विरह ( Virah )   वो अपनी दुनिया में मगन है, भूल के मेरा प्यार। मैं अब भी उलझी हूँ उसमें, भूल के जग संसार।   याद नही शायद मैं उसको,ऋतु बदला हर बार। विरह वेदना में लिपटी मैं, प्रीत गयी मैं हार।   मैं राघव की सिया बनी ना, जिसकी प्रीत सहाय। मैं कान्हा … Continue reading विरह | Virah ke geet