याद न जाये, बीते दिनों की | Yaad Na Jaye
याद न जाये, बीते दिनों की ( Yaad Na Jaye Beete Dinon Ki ) बैठी हूँ नील अम्बर के तले अपनी स्मृतियों की चादर को ओढ़े जैसे हरी-भरी वादियों के नीचे एक मनमोहक घटा छा जाती है। मन में एक लहर-सी उठ जाती है जैसे कोई नर्म घास के बिछौनों पर कोई मंद पवन … Continue reading याद न जाये, बीते दिनों की | Yaad Na Jaye
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