आपकी सोच ही | Aapki Soch

आपकी सोच ही ( Aapki soch hi )    धाराओं मे बंटते रह जाने से नाम मे कमी हो या न हो महत्व घटे या न घटे,किंतु प्रवाह के वेग मे कमी आ ही जाती है… अटल सत्य को काट नही सकते थोथे चने मे आवाज घनी हो भले किंतु,सामूहिक और व्यक्तिगत दोनो मे समानता … Continue reading आपकी सोच ही | Aapki Soch