आकर्षण है पाप में | Akarshan hai Pap Mein

आकर्षण है पाप में ( Akarshan hai pap mein )   जीवन की सुख-शान्ति, दग्ध हो जाये न अनुताप में। सदा सजग होकर रहना है, आकर्षण है पाप में। कुत्सित छलनायें आती हैं, कृत्रिम रूप संवार कर। सहज नहीं स्थिर रह पाना, मन को उन्हें निहार कर। एक-एक पग का महत्व है, पथिक सशंकित रहना! … Continue reading आकर्षण है पाप में | Akarshan hai Pap Mein