अपने मिलते अनजानों में अपने मिलते अनजानों में।। गुल भी खिलते वीरानों में।। कोई दिल को भाने वाला । मिल जाता है बेग़ानो में।। टुकड़े कर दे जो इस दिल के। कैसे रहता अरमानों में।। देखी जीवों में मोहब्बत। नफ़रत केवल ईंसानों में।। दिल दुःखाकर क्या पाओगे! … Continue reading अपने मिलते अनजानों में
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