अपने मिलते अनजानों में

अपने मिलते अनजानों में

अपने मिलते अनजानों में

 

 

अपने   मिलते  अनजानों में।।

गुल भी  खिलते  वीरानों  में।।

 

कोई   दिल  को भाने वाला ।

   मिल  जाता   है  बेग़ानो  में।।

 

टुकड़े कर दे जो इस दिल के।

   कैसे    रहता   अरमानों   में।।

 

देखी   जीवों    में   मोहब्बत।

 नफ़रत  केवल    ईंसानों  में।।

 

दिल दुःखाकर   क्या पाओगे!

 सूकूं  मिलता   मुस्कानों  में।।

 

ग़र  हो  जाए  मेहर   रब की।

दीये    जलते   तूफानों   में।।

 

नित  देवों  के  सर  चढते या।

  गुल खिलते कुछ सुनसानों में।।

 

जां  देकर  भी  मंजिल पाना।

  ज़ज्बा    ढूंढो   परवानों   में।।

 

जो   पैमानों   में   आँखों  के।

  मस्ती कब  वो  मयख़ानों में।।

 

‘कुमार” जगत यूं  माया  जानों।

 तल लगता ज्यूं असमानों में।।

 

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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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