और झनकन | Kavita jhanakan

और झनकन ( Aur jhanakan )   तार वीणा के शिथिल इतनी स्पंदन और झनकन। बिना कंगन असह्य खनकन और झनकन।। शांत अन्तस्थल में कल कल की निनाद। चिरन्तन से अद्यतन तक वही संवाद। इतीक्षक कब होगा दरपन जैसा ये मन और झनकन।। बिना कंगन० करुण क्रंदन चीख बहती अश्रुधारा। जब विभू था सम्प्रभू था … Continue reading और झनकन | Kavita jhanakan