और झनकन
और झनकन

और झनकन

( Aur jhanakan )

 

तार वीणा के शिथिल इतनी स्पंदन और झनकन।

बिना कंगन असह्य खनकन और झनकन।।

शांत अन्तस्थल में कल कल की निनाद।

चिरन्तन से अद्यतन तक वही संवाद।

इतीक्षक कब होगा दरपन जैसा ये मन और झनकन।। बिना कंगन०

करुण क्रंदन चीख बहती अश्रुधारा।

जब विभू था सम्प्रभू था न विचारा।

कह रही कुछ कर्णवेधित पवन सन सन और झनकन।। बिना क०

सिंधु गर्त अनन्त शेष हिरण्य सा है।

वृद्ध तरुण त्रिढंग लावण्य सा है।

रात बीती जागेगा तूं कब अचेतन और झनकन।। बिना कंगन ०

 

लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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