बंजारा के मुक्तक | Banjara ke Muktak

दीप दिल की डगर जाना है कहीं उसकी प्रतीक्षा में बैठा हूं वहीँ राम ! तुम तो घर लौट आये- मै अभी तलक लौटा ही नहीं…. जब जख्मों की आहट होती है टीस अंदर से प्रगट होती है राम ! क्या बताऊं कि ऐसे में एक याद ही केवट होती है…. ये दुनिया हरामी है … Continue reading बंजारा के मुक्तक | Banjara ke Muktak