मूर्खतंत्र
ईसा- पूर्व तो सबसे ऊपर — मनु ही सरमाया था
फिर राजतंत्र के दौर में — रक्त सबका गरमाया था
आखिरकार लोगों ने त्रस्त हो कर निर्णय एक लिया
लोकतंत्र की नींव रखी और ये मूर्खतंत्र अपनाया था!
बदनाम
बदनाम होने के लिये जैसे नाम ही काफी है
पीकर बहकने तेरी आंखों का जाम ही काफी है
नयी रौशनी के खिलाफ खड़े अंधेरों से लड़ने को
अपने भीतर का जागा हुआ राम ही काफी
वो कहते थे
वो कहते थे एक न एक दिन गरीबी हटा दी जायेगी
समाज की हर सर उठाती आशंका दबा दी जायेगी
पर उन्हें क्या पता था यह खाई इतनी चौड़ी होगी
कि लोगों के हाथों उनकी ही –सत्ता ढ़हा दी जायेगी…
जुबां
जिनकी जुबां पर दूसरों के लिये मीठे उद्गार नहीं है
कैसे ना माने —ऐसे कलुषित मन बीमार नहीं है
ये लोग केवल और केवल , है यहाँ प्रतिक्रियावादी
इनके पास कभी भी अपने मौलिक विचार नहीं है!
अपने फायदे
अपने फायदे के लिये ध्यान लगा कर बैठे हैं
लोग आपकी दीवार से कान लगा कर बैठे हैं
जिन्हें देश की अस्मिता का दर्द मालूम नहीं वे
नयी – नयी गारंटी की दुकान लगा कर बैठे हैं!
शीशे की परछायी
शीशे की परछायी कांच नहीं होती
अंतर्बिम्ब की कभी जांच नहीं होती
प्रेम सुलगते हुये अरमानों की चिता है
इस आत्मदहन में आंच नहीं होती!
जिंदगी
जिंदगी उसकी खट्टी ना मीठी, ना कोई नमकीन है
आदमी है वह फुटपाथ का, नाम उसका रामदीन है
सब लोग उसके आस–पास मना रहे थे धूलि–वंदन
जबकि दिल उसका उदास है और दुनिया रंगहीन है!
सांझ की खिड़की
सांझ की खिड़की से झांकता–पूर्ण चंद्रमा हो तुम
प्राचीर के शून्य में खोयी — पाषाणी प्रतिमा हो तुम
भूल से होंठो की कलियां– छू ली तो आभास हुआ
पहली बार लजाते हुये गालों की लालिमा हो तुम!
चुनावी मौसम
इस चुनावी मौसम पर सब प्रेमी बहाने से मिले
बागों की डालियों संग फूल, जुल्फों में भी खिले
जो जड़ें हमारी बता रहे कि आज खतरे में है-
उन्ही के धड़कते दिलों की ज़मीनें, पैरों तले हिले!
कर्तव्य – पथ
चलकर सदा कर्तव्य – पथ पर दीप प्यार के जलायेंगे
जो दिशाहीन अधियाला होगा उसे राह नयी दिखायेंगे
कोई लाख प्रलोभन दे अथवा करे भयभीत किसीको
हम लोकतंत्र के है वाहक -हम फर्ज अपना निभायेंगे!
हम किसी मोड़ पे
हम किसी मोड़ पे मिलेंगे — ये दिल का वास्ता था
मकसद था अलग हमारा –मगर एक ही रास्ता था
तुम्हें मंजिल मिल जायेगी तो –तुम भी चले जाओगे
मैं कहीं दूर निकल जाऊंगा –मुझे पक्का पता था!
चांद की रौशनी
चांद की रौशनी में अंधेरे– का जहर घुला था
शायद रात की नथ का — कोई पेंच खुला था
सब रिश्तों के सूत्रों को –आपस में जोड़ते रहे
अततः अर्थी के तराजू पर– प्रेम ही तुला था!
ढ़लती शाम
ढ़लती शाम में काली घटायें– कभी संग ली मैंने
प्रेम करने की आज़ादी को समझा था जंगली मैंने
कांच के जाम-सा दिल उसका, देख पछता रहा हूं
कि क्यों चमकती नोंक के ऊपर रख दी उंगली मैंने!
खिले गुलाब -सी लगती हो
भींगे हुये वस्त्रों पर लिपटी शराब –सी लगती हो
प्रणय के प्रत्येक इशारे का जवाब–सी लगती हो
होली का हुड़दंग था, तुम्हें छिप-छिप के देख लिया
तपती धूप में भी खिले- खिले गुलाब -सी लगती हो!
जीवन की तेज धूप में
जीवन की तेज धूप में लहू अपना कढ़ाया मैंने
आंखों में बसी तस्वीर को भीतर ही मढ़ाया मैंने
पीपल के हरे पत्तों पे नाम लिख -लिख के तुम्हारा
कभी आंसुओं के संग था, शिवालय में चढ़ाया मैंने!
कोई सपना
फिर आंख से ओझल हुये – तुम अधिमास की तरह
मधुमास ले कर आये भी हो तो खरमास की तरह
इसके पहले कि कोई सपना जन्म पाये पृथ्वी पर
दिल की कुवांरी ममता तड़प उठी अट्टमास की तरह!
मां तुम्हारा
मां तुम्हारा रूलाना मैं भूला नहीं
मां तुम्हारा हंसाना मैं भूला नहीं
दूध में शक्कर संग रोटी भिंगोना
मां तुम्हारा खिलाना मैं भूला नहीं.
मां मैंने
मां मेरा रूदन कब सुन पाती
मां मैंने पुकारा दौड़ी चली आती
मैं एक चाकलेट की जिद करता
तुम आंचल में सब छिपा लाती .
मां तुम
मां तुम निश्छ्ल – निर्मल सरिता हो
मां तुम सौम्य – स्वरूप वनिता हो
तुलसी दास की रामायण – सी तुम
तुम्हीं जयशंकर प्रसाद की कविता हो
अपना दिल
प्यार भी किया मुझको तो मिलने पे परहेज रखा
मैंने अपना दिल, हल्दी वाले दिन तक सहेज रखा
इतने उपहारों के बीच कोई देख ही नहीं पाया-
किसीने चुपके से द्वार पर आंसुओं का दहेज रखा
मेरे आराध्य प्रभु
जहां सांसें खुद रचे अपना स्वयंम्बर
ओढ़ बैठूं मैं तटस्थ हो पिताम्बर
तेरी साधना में तन्लीन रहूं सदा
मेरे आराध्य प्रभु! मेरे दत्त -दिगम्बर!
नहीं सकता
क्या एकांत – प्रिय रो नहीं सकता
गहराईयों में जा खो नहीं सकता
जो अभागा होता नहीं कभी अपना
वो ईश्वर का भी हो नहीं सकता!
नहीं चाहिए
मुझे भूखे -पेट भक्ति नहीं चाहिए
कोई अहम-भरी शक्ति नहीं चाहिए
आत्मा की ऊंचाईयां तो जानूं मैं
मरने के बाद मुक्ति नहीं चाहिए!
हुक्मरान
जब आटा – दाल पर सवाल हुआ
किसी हुक्मरान को नहीं मलाल हुआ
जिसने कुर्सी पे बैठ कसमें खायीं
उसी के हाथों देश कंगाल हुआ!
शत्रुता में
शत्रुता में कहीं संवाद होता है
प्रलाप में कहीं प्रसाद होता है
जिनकी जुबान पर जेहाद होता है
मुल्क उन्हीं का बर्बाद होता है!
बातें
मजहब की बातें तो बेहद करे
अलगाव का काम एक अदद करे
जो कर्ज के रसातल में धंसा हो
कौन उस मुल्क की मदद करे!
ईश्वर की अनुकम्पा
ईश्वर की अनुकम्पा से जीव हुये
साधना से भी पत्थर सजीव हुये
भोले भी पहले केवल महेश थे
फिर शंकर बने अंततः शिव हुये!
बोझ
दिल पर पड़ा बोझ उतार लेते
दुआ ले कर जीवन संवार लेते
मैं फकीर गली से गुजरा था
तुम द्वार खड़े थे , पुकार लेते.
ये बताना
ये बताना सचमुच मुश्किल होता है
कि अंदाज उसका कातिल होता है
जमाना ही पत्थर -दिल नहीं होता
सनम भी तो पत्थर -दिल होता है!
प्यार में
प्यार में इतने बावले हो गये
मीठे बेर थे आंवले हो गये
अमराई की भी ऐसी छांव पड़ी
कि हम तनिक सांवले हो गये
ये सिला
ये सिला कभी चला भी नहीं
ख्याल था पर , उड़ा भी नहीं
उसने रूक कर हंसा भी नहीं
मैंने मुड़ कर देखा भी नहीं !
जाने किधर गयी
अभी थी सुगंध जाने किधर गयी
हवा चली तो शायद सिहर गयी
ओस की बूंदें भी इतनी पड़ी कि
गुलाब की पांख-पांख बिखर गयी!
इतिहास के रक्त
इतिहास के रक्त -रंजित दौर देखोगे
कि मरती आस्था के गण-गौर देखोगे
दूर आकाश की अदृश्य आंखों से
अरे अनंत ! कितने अंत और देखोगे?
भाग्य कूट गये
कर्म तले सब भाग्य कूट गये
मेहनत के हाथों मिथक टूट गये
उसने जब कातर हो बोला -विठ्ठल!
पत्थर में भी प्राण फूट गये .
हादसों का हल
हादसों का हल कहीं सूझता नहीं
अंधेरों की पहेली कोई बूझता नहीं
दिल भी ऐसे में मुकर जाता है
मैं क्यों परेशान हूं — पूछता नहीं
आख़री सफर
किसी तरह की यंत्रणा काबिल नहीं
माया का मिलना कोई हासिल नहीं
मौत ही जीवन का आख़री सफर
इस रास्ते की दूसरी मंजिल नहीं !
हाथ धोकर
हाथ धोकर मेरे पीछे पड़े थे
मेरे नाम पर परस्पर लड़े थे
आज यही लोग मेरी अंत्येष्टि में
दूर हाथ बांधे चुपचाप खड़े थे !
अपने अलावा
अपने अलावा अपनी खैर कौन करे
अपशगुनी रातों में सैर कौन करे
लेकर प्रभु का नाम लेटे रहिये
मगर दक्षिण की तरफ पैर कौन करे !
चाहत
पता नहीं चाहत से किन लोगों को चंद्रहार मिले
उदासियों में तो तन्हाई के ही सब उपहार मिले
मेरी कविताओं को यदि तुम्हारा थोडा़- सा प्यार मिले
तब मैं क्योंकर चाहूं कि मुझे कोई पुरस्कार मिले!
चला जाऊंगा
जिंदगी मिली है तो किस्मत संवार कर चला जाऊंगा
आईना जिसे चाहे प्यार से, निहार कर चला जाऊंगा
फिर ना कहना कि मैंने — आवाज नहीं दी आकर
तुम्हारी गली तुम्हें कुछ देर पुकार कर चला जाऊंगा!
आस मिलन की
होश में रहते न संभली मदहोशी में क्या संभलेगी
आस मिलन की प्राणों के साथ ही क्या निकलेगी
तुम ने कहा राहें बदलो, मंजिल भी जायेगी बदल
किंतु तुम्हारी आदत हो गयी,ये अब क्या बदलेगी.
रामटोली
मुखड़े पे सोने की नथ जैसी
उद्यान में फूलों के पथ जैसी
रामटोली दूर से झिलमिलाती है
अश्वमेध के पास आते रथ जैसी.
राम रसायन
सूर्य- नमस्कार करूं कि उत्तरायण हुआ
जैसे मेरे अनुष्ठान का पारायण हुआ
जीवन सारा लगा स्वाद – भरा मिष्ठान
हृदय का स्पंदन राम– रसायन हुआ!
राम
राम ! तुम्हारा नाम लेना छोड़ा नहीं
राम ! तुम्हारे लिये मुंह मोड़ा नहीं
तुम ने प्रस्तर जोड़ सेतु बनाया —
पर टूटा दिल कभी जोड़ा नहीं .
राम कहानी
आवारा बादल - सी मेरी कहानी है
प्यासे दरिया – सी प्रेम – कहानी है
तेरी –मेरी इसकी और उसकी भी
सबकी एक – सी राम – कहानी है!
राम-रोग
आग में सृजन ना सुलग जाये
चाहत में अलख ना जग जाये
प्रेम– रोग में तपते हुये कहीं
मुझे राम — रोग ना लग जाये!
आकर तुम
आस की मुंडेर पर बांधा तोरण
रंगोली के ऊपर लिखा स्नेह-वंदन
आकर तुम एक दीप जला दो
महक उठेगा ये सूना-सा बिंद्राबन .
आज
आज हथेली पर जान उठानी होगी
ज्योति आस्था की ऐसे जलानी होगी
अब तो बेटियों की आबरू की तरह
मन्दिरों की पावनता बचानी होगी !
तेरे चरणों में
तेरे चरणों में रखूं प्राण — अपान
नाम- स्मरण ही मेरा विधी – विधान
जीवन का अन्य कोई लक्ष्य नहीं
तेरे सिवाय एक मेरे कृपा -निदान!
राम -दरबार
आदमी का दर्द दर्जेदार हो जाये
धर्म सभी का मिलनसार हो जाये
मेरे भारत की संसद भी अब –
चलें ऐसे कि राम -दरबार हो जाये
नियमबद्ध
सोम को जल शनि को सिन्दूर
हो नियमबद्ध जीवन के दस्तूर
हम तो फिर एक इन्सान हैं
लापरवाही चिंटी को भी नामंजूर!
महामिलन
दोनों को महामिलन की लत है
जीवन–मृत्यु आलिंगन में रत है
रूह कांप जाती है कहीं सुनकर
ये सच्चाई कि –रामनाम सत है!
रामपद
अयोध्या की गलियों से राजपद मिलें
दिल्ली की गलियों से जनपद मिलें
मैं जो भटक रहा हूँ जंगल — जंगल
हे ईश्वर ! मुझे मेरा रामपद मिलें.
साथ चलते हैं
साथ चलते हैं रास्ते समरूप में
विचार ढ़लते हैं उसी अनुरूप में
सारे बह्माड़ की कृति दिखी मुझे
बस! एक पत्थर के रामरूप में…
किसी बेटे ने
किसी बेटे ने वृध्दजन त्याग दिया
किसी बेटे ने आंगन विभाज्य किया
हिस्सा बांट कर फिर अपना -अपना
सब ने समझ कि – रामराज्य लिया!
नहीं सकता
मूरख कभी मोती बिन नहीं सकता
सूर्य- किरण कोई गिन नहीं सकता
मुझे चोर-उचक्कों से घबरना कैसा
जग,मेरा रामधन छिन नहीं सकता!
शिकायत
मौसम से शिकायत जरा — सी रही
छत पर गेसूओं की उदासी रही
शहर — भर बरसे नेह के बादल
मगर मेरी गलियां तो प्यासी रही!
तुम्हारी याद में
तुम्हारी याद में तन्हाइयां पड़ी थीं
दराज में जैसे दवाईयां पड़ी थीं
चल कर मंज़िल कैसे पाता भला
भाग्य – लकीर में बिवाईयां पड़ी थी
उत्सव
ये दरिया है रौशनी का, बहेगा
जग तो इसे उत्सव ही कहेगा
हर तराशा हुआ पत्थर तन्हा था
उत्सव में भी– तन्हा ही रहेगा!
प्यार में
यदि प्यार में मेरी नाकामी होगी
फिर कोई पूजा कैसे फलगामी होगी
दिल जो टूटा चाहत में किसी का
तो राम ! तेरी भी बदनामी होगी!
देख
दीन देखकर हरेक की व्यथा देख
ईमान के कारण रोटी अन्यथा देख
सारे जीवन की सच्चाई जान लेना
दिल के अंदर पहले रामकथा देख!
तुम्हीं ने
तुम्हीं ने तन्हाई का प्रभाग दिया
तुम्हीं ने जुदाई का वैराग दिया
आज आकर प्रकोष्ठ पर तुम्हारे
लो, मैंने भी प्रेम त्याग दिया!
मेरे वचन
मेरे वचन की उसको खात्री हो जाये
इस मोड़ वह भी सह -यात्री हो जाये
सोने से पहले मैं याद करुं अकसर
ये शुभ -रात्रि अब राम- रात्रि हो जाये!
अपने राम
दिल निकाल के पर्स में रखूं
ग़म सिगरेट के कश में रखूं
फिर तन्हाई का साया न मिले
अपने राम अपने वश में रखूं!
ये दरिया है
ये दरिया है रौशनी का, बहेगा
जग तो इसे उत्सव ही कहेगा
हर तराशा हुआ पत्थर तन्हा था
उत्सव में भी– तन्हा ही रहेगा
नहीं आ पाऊंगा
गरीबी से मुश्किल है निकल पाना
मैंने घर को ही मंदीर है माना
राम ! अयोध्या मैं नहीं आ पाऊंगा
तुम्हीं एक दिन द्वारे चले आना..
यह प्रेम
यह प्रेम कहां आकर ठहरा है
यहां तो चकाचौंध का खतरा है
देखने वाले देख ले जरा इधर
मेरी आँखों में रामरंग उतरा है!
हृदय में
हृदय में ध्वनित अनुराग होता है
जिव्हा में गुंजित रसराग होता है
शब्द- सुरों से बहती पवन – सा
मेरा प्रत्येक छंद रामराग होता है!
चतुर आदमी
चतुर आदमी कर्म को बोता है
मूर्ख आदमी किस्मत पर रोता है
घर-संसार का अपना काज ही
सबसे उत्तम रामकाज होता है!
दूर जाऊं
शोर- भरी दुनिया से दूर जाऊं
निशब्द हवा के संग घूम आऊं
सब लोकाचार के बीच हैं गाते
मैं बैठ अकेले में रामराग गाऊं!
हो जाये
इस मोड़ वह भी सह -यात्री हो जाये
मेरे वचन की उसको खात्री हो जाये
सोने से पहले मैं चाह करुं अकसर
ये शुभ -रात्रि अब राम- रात्रि हो जाये!
सच की खातिर
सच की खातिर सच ही अड़ा है
हर शख्स रोड़ा बनकर खड़ा है
ईमान पे चलना हो सरल शायद
रामपथ पे चलना कठिन बड़ा है!
सच्चे कथन
सच्चे कथन में झूठी बात देखीं
अच्छे कायदे में बुरी घात देखीं
हमने कोटा- सिस्टम में यहां पर
अगड़ों में भी पिछड़ी जात देखीं…
क्यों महिलाओं को
क्यों महिलाओं को ही रोना चाहिए
कुछ मर्दों को भी खोना चाहिए
इनकी हूरों का सामना जन्नत में
इन्द्र की अप्सराओं से होना चाहिए!
वैदिक पाठ – शालाएं
तुम्हें बच्चों में जिज्ञासा तो मिलेगी
तुम्हें बच्चों में ग्लानि भी खलेगी
जब तक कि गांव -गांव गली -गली
वैदिक पाठ – शालाएं नहीं खुलेगी!
यह कैसी आजादी
जाने कौन गली में पत्थर उछाले
शहर जब भी शोभा -यात्रा निकाले
यह कैसी आजादी मिली कि यहां
हरेक पर्व है ! नफरत के हवाले…
जख्मों की आहट
जब जख्मों की आहट होती है
टीस अंदर से प्रगट होती है
राम ! क्या बताऊं कि ऐसे में
एक याद ही केवट होती है !
दिल की डगर
दिल की डगर जाना है कहीं
उसकी प्रतीक्षा में बैठा हूं वहीं
राम ! तुम तो घर लौट गये
मैं अभी तलक लौटा ही नहीं.
सृष्टि तुम्हारी
राम! सृष्टि तुम्हारी है ओम — सी
हृदय में जैसे ज्वाला होम — सी
तुम ने शिला अहिल्या बनायी मगर
उसे भावना भी देते मोम — सी !
प्यार कभी
प्यार कभी देर -सबेर तो मिले
गुलाब न सही कनेर तो मिले
कर्मफल की आस कि मुझे भी
शबरी -से झूठे बेर तो मिले .
राम
राम ! तुम्हारा नाम लेना छोड़ा नहीं
राम ! तुम्हारे लिये मुंह मोड़ा नहीं
तुम ने प्रस्तर जोड़ सेतु बनाया —
पर टूटा दिल कभी जोड़ा नहीं
होना चाहिए
अहम बात पर परिसंवाद होना चाहिए
निर्णय का पक्ष निर्विवाद होना चाहिए
कोई आडम्बर होगा कैसे ज्ञान भला
ब्रह्मणवाद को भी ब्रह्मवाद होना चाहिए!
ज्यां पाल सार्त्र
हर तर्क सहअस्तित्ववाद से काटने वाला
फ्रांस की व्यथास्थिति को पाटने वाला
शायद – कोई ज्यां पाल सार्त्र रहा होगा
वो गली – गली पाम्पलेटस् बांटने वाला!
मूल्यांकन
कभी सत्यजीत राय का फिल्मांकन हुआ
कभी एम एफ हुसैन का चित्रांकन हुआ
कभी कथित एजेंसी की डाक्यूमेंट्री में-
अपने भारत का ग़लत मूल्यांकन हुआ.
संघर्ष जिन्दगी का
आज साहित्य भी जिससे अन्जान है
संघर्ष जिन्दगी का वही बे-जुबान है
कभी चौपालों पर बैठ कर तो देखो
यहाँ हर गांव प्रेमचंद का गोदान है!
ज़मीन वहां की
जिस प्राचीर पर बदली छाती है
ज़मीन वहां की क्रांति लाती है
कभी गरजते थे दिनकर मंचों से-
सिंहासन खाली करो-जनता आती है!
रास्ते में
बैठ रिक्शे पर यादें ताजी हुयीं
साथ चलने को घर राजी हुयीं
रास्ते में फिर मुझे गुलज़ार मिले
बातें उड़ती रही…नज़्में पाजी हुयीं.
कर्ज सरकारी
जब मोफत में कर्ज सरकारी मिले
लगे पराये घर कन्या -कुवांरी मिले
श्रीलाल शुक्ल बताते हैं कि उन्हें-
कितनी चौखट पे राग -दरबारी मिले.
गली -गली
गली -गली में पब्लिक की इबादत है
गली – गली में पब्लिक की हजामत है
यहां मत आईये, रविंद्र कालिया जी
यहां पर खुदा सही सलामत है !
श्याह होती मुंबई
श्याह होती मुंबई रैम्बो दिखाई दे
नंगी सड़क नवी टेम्पो दिखाई दे
यहां हर शख्स टेबासिंह -सा लगे
कागज पर मरता मंटो दिखाई दे!
उलझे ख्वाब
उलझे ख्वाब का टूटा तिलिस्म हूं
इंसानी नस्ल की कौनसी किस्म हूं
मैं भी — फैंच काफ्का की तरह
खाली जाम- सा खोखला जिस्म हूं!
कोई बुलबुल
कोयल माईक के आगे कविता बांचेगी
कलम खुद नयनों की भाषा जांचेगी
जब -जब मणि मधुकर के रंगमंच पर
कोई बुलबुल सराय की राधा नाचेगी.
अंधों की चौखट पर
जो जान यहां तक देकर पहुंचे
जो तूफां में नाव खे कर पहुंचे
हमीं थे — अंधों की चौखट पर
जो घर से आईना लेकर पहुंचे!
माना कि
दिल जब चाक़- जिगर होता है
बुरा सब पेशे – नज़र होता है
माना कि मेरी दुआएं नहीं कारगर
पर बद्दुआओं का असर होता है
वक्त के साथ
मुद्दे उछालने की जंग जुबानी है
चर्चा में रहना आदत पुरानी है
वक्त के साथ नारे धूमिल हुये
कल राफेल था आज अदानी है!
बदलते ही
शस्त्र बदलते ही प्रहार बदलता है
पार्टी बदलते ही प्रचार बदलता है
इसे सियासी परिपेक्ष्य में यूं देखा
व्यक्ति बदलते ही विचार बदलता है.
दिल की डगर
दिल की डगर जाना है कहीं
उसकी प्रतीक्षा में बैठा हूं वहीं
राम ! तुम तो घर लौट गये
मैं अभी तलक लौटा ही नहीं
राम
राम! सृष्टि तुम्हारी है ओम — सी
हृदय में जैसे ज्वाला होम — सी
तुम ने शिला अहिल्या बनायी मगर
उसे भावना भी देते मोम — सी !
प्यार कभी
प्यार कभी देर -सबेर तो मिले
गुलाब न सही कनेर तो मिले
कर्मफल की आस कि मुझे भी
शबरी -से झूठे बेर तो मिले
शिकायत
मौसम से शिकायत जरा — सी रही
छत पर गेसूओं की उदासी रही
शहर — भर बरसे नेह के बादल
मगर मेरी गलियां तो प्यासी रही!
तुम्हारी याद में
तुम्हारी याद में तन्हाइयां पड़ी थीं
दराज में जैसे दवाईयां पड़ी थीं
चल कर मंज़िल कैसे पाता भला
भाग्य – लकीर में बिवाईयां पड़ी थी
लौट भी आओ
आज हर नगरवासी ने कहा है
चरण – बिम्ब पर आंसू बहा है
लौट भी आओ , वर्षा – वनों से
राम! मुकुट तुम्हारा भींग रहा है !
चंचल हवा
जब चंचल हवा ने बदन छुआ
तुम्हें देखने चांद अटारी पे रूका
एक शाम मुलाकात ऐसी भी रही
यहां खिड़की खुली वहां दीप बुझा.
मिली दुआ
दिलों के मिलन को मिली दुआ
भार नक्षत्रों ने भी उठा लिया
पर हवाएं आग्नेय दिशा की थीं –
उसने बसता घर ही जला दिया
गया
ताल की तलाश में सारस गया
मेघ भी देखने तुम्हें तरस गया
तुम व्दार पर दीपक रख गयी
मैं खड़ा बरामदे से वापस गया .
टीस
जब जख्मों की आहट होती है
टीस अंदर से प्रगट होती है
राम ! क्या बताऊं कि ऐसे में
एक याद ही केवट होती है !
अपने भीतर
अपने भीतर कुछ था तलाशा जिसे
सब जग कहता था निराशा जिसे
ये मेरी लगन या कोई कल्पना –
बोल उठा वो पत्थर तराशा जिसे.
धोका
मुझे प्यार के बदले धोका मिला
नहीं कोई किस्मत से मौका मिला
जो खुशी भी मिली, मिली नकली मुझे
मगर ग़म हमेशा ही चोखा मिला!
खट्टा -मीठा
जीवन को बना कर खट्टा -मीठा, सबसे ऐंठा – ऐंठा मैं
यहां हैदराबाद की बिरयानी तो वहां आगरे का पेठा मैं
एक ही फूल का रसास्वादन पूरा कभी किया नहीं
ये क्या करना चाहा था और — क्या करके बैठा मैं!
जश्न – ए -बहारां
ये जश्न – ए -बहारां है यहां सभी को आना है
आकर अपने हिस्से का कोई किस्सा सुनाना है
मगर मैं खोया रहता हूं तेरे खामोश ख्यालों में
मुझे तो इस खजाने को पाकर ही लूटाना है!
गुनगुनाती नहीं है
हवा, फूलों-भरी ऊंची बालकनी पर सरसराती नहीं है
गली, सांझ की खिड़कियों के संग गुनगुनाती नहीं है
पता नहीं आजकल क्या हुआ उस मासूम लड़की को
वो दूर से देखती जरूर है — मगर मुस्कुराती नहीं है!
कभी ना कभी
कभी ना कभी तो दिलवाले मिल के रहते हैं
मगर ये तुम समझती हो ना हम समझते हैं
चांद- तारे भी गगन में गले मिलते हैं जरूर –
इसी उम्मीद की लय पे, तो दिल धड़कते हैं!
बिखरी बिखरी
तुम्हारी खातिर स्वर्ग को भी धरती पर उतार दूं
बिखरी बिखरी -सी जुल्फें तुम्हारी चूम के संवार दूं
तुम यदि प्रेम करना चाहो तो,ओ पत्थरदिल सनम!
मैं अपना ये कोमल हृदय ,बोलो-तुम को उधार दूं ?
मैं दीवाना हूं
मैं दीवाना हूं दीवाने को दीवाना ही रहने दे
एक आंसू हूं मुहब्बत का अपने – आप बहने दे
मेरी दीवानगी को तू मत कहना पागलपन —
ये पागल दुनिया जो चाहे मुझे कहती है कहने दे!
छोड़ दिया
पर्वत ने बीच चट्टान को जैसे दरकता छोड़ दिया
पानी इतनी जोर से उछला तट छलकता छोड़ दिया
रिश्तों के घने जंगल का –मैं भटका हुआ रास्ता था
इस विरान रास्ते को उसने फिर भटकता छोड़ दिया
कहां पे उलझना
जिस तरफ जाना मना था उस तरफ गये हम
जमाने की तेज गति को खूब समझ गये हम
दिल का घायल रिश्ता मिला कांटों -भरी राह में
कहां पे उलझना चाहाऔर कहां उलझ गये हम
मिलने के नाम पर
मिलने के नाम पर कसम, डाली थी सबकी मुझे
मेरे मेसेज को पढ़े- बगैर कह दिया सनकी मुझे
कल जब मैंने बात करके, समझाना भी चाहा तो
उसने दी मोबाईल पे ब्लाॅक करने की धमकी मुझे
ग़मों की बदली
ग़मों की बदली छाती है तुम्हारी याद सताती है
शाम यादों की तन्हा है ,और तन्हाई रुलाती है
मैं अक्सर भींगता रहता हूं सावन में फूहारों से
जो रह रहकर मेरा ये दिल जलाती है बुझाती है!
मेरी खता नहीं
दिल रो -रोकर कह रहा है मेरी खता नहीं है
कैसे दर तक तुम्हारे पहूंचा मुझको पता नहीं है
जिसके लिये उमर -भर मैं लड़ाता रहा अकेला-
वो मंजिल तो सामने है, आगे रास्ता नहीं है !
सुलगती सांस
जो तुम मुझसे मिलो एकबार तुम्हें भी प्यार हो जाये
सुलगती सांस को छूलो तो फिर एतबार हो जाये
तुम्हारी याद में डूबा रहता है ये दिल कुछ ऐसे —
कि जैसे डूब कर पत्थर खुद पानीदार हो जाये !
गुलदस्ता
सजा कर दिल हथेली पर–उसके घर दे आया
गुलदस्ता अपनी गज़लों का वहीं छोड़ के आया
टूटती दोस्ती का गम, ये न करता तो क्या करता
मैं देकर जान मुहब्बत में खाली जिस्म ले आया!
सच कहूं तो
तुम्हारे तन पे अंगड़ाती हुयी जो ताजा जवानी है
कैसे शब्दों में वर्णित करूं, ये चमक रूहानी है
खुद कविता ने रचा हो जिसके अप्रतिम रूप को
सच कहूं तो — उस पर, कुछ रचना बेमानी है…
वो मासूम चेहरा
दिल के शीशे में झांकता है ऐसे कि संवर जाता है
मुझे देख के मुस्कुराता है जब भी जिधर जाता है
मगर आजकल मुहब्बत के नाम पे है परेशान -सा
वो मासूम चेहरा, मेरी गली से चुपचाप गुजर जाता है!
जहां दिखे
जहां दिखे साये देवदार –से तनिक रूक गया मैं
जहां मिले टीले अंधकार –से क्षणिक झुक गया मैं
मज़िल की तलाश में कभी,बदहवास दौड़ा नहीं था
वरना मुझे भी कहना पड़ता कि रस्ता चुक गया मैं..
आज पूछता हूं
आज पूछता हूं कि भगवान धरती पर कहां गया
किस देवता के द्वारा दर्द, दुर्भाग्य का सहा गया
सामने लाश पड़ी थी और मुझे रोते बिलखते हुये
उनकी मांग में रचा सिन्दूर,पोंछने को कहा गया!
जलाया दिल
जलाया दिल पर रौशनाई वहां तक जा न सकी
रोती हुयी मोमबत्ती जहां कोई हंसी पा न सकी
उस बेवफा को प्यार में हजारों गिफ्ट दिये मैंने
वो कभी दस रूपये का एक पेन भी ला न सकी.
वो तस्वीर
झूठे वादों से लाज की दर लांध ली उसने
मेरी वफाएं घर की ठूंटी पर डांग ली उसने
वो तस्वीर जिसे मैं चूम के सोया करता था
वो तस्वीर भी कसमें दे कर मांग ली उसने.
सुरेश बंजारा
(कवि व्यंग्य गज़लकार)
गोंदिया. महाराष्ट्र