बरखा ( Barakha ) छम-छम करती आ पहुंची, फुहार बरखा की। कितनी प्यारी लगती है, झंकार बरखा की।। हल्की-फुल्की धूप के मंजर थे यहां कल तलक। टपा-टप पङी बूंदे बेशुमार बरखा की।। पानी का गहना पहने है , खेत, पर्वत, रास्ते। करके श्रृंगार छाई है , बहार बरखा की।। झींगुर, मोर, … Continue reading बरखा | Barakha par Kavita
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