भिखारी | Hindi Poem on Bhikhari
भिखारी ( Bhikhari ) फटे पुराने कपड़ों में मारे मारे फिरते हैं भिखारी, इस गांव से उस गांव तक इस शहर से उस शहर तक न जाने कहां कहां ? फिरते हैं भिखारी । अपनी भूख मिटाने/गृहस्थी चलाने को न जाने क्या क्या करते हैं भिखारी? हम दो चार पैसे दे- अनमने ढंग से … Continue reading भिखारी | Hindi Poem on Bhikhari
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