भिखारी

भिखारी | Hindi Poem on Bhikhari

भिखारी

( Bhikhari ) 

 

फटे पुराने कपड़ों में
मारे मारे फिरते हैं भिखारी,
इस गांव से उस गांव तक
इस शहर से उस शहर तक
न जाने कहां कहां ?
फिरते हैं भिखारी ।
अपनी भूख मिटाने/गृहस्थी चलाने को
न जाने क्या क्या करते हैं भिखारी?
हम दो चार पैसे दे-
अनमने ढंग से सरक लेते हैं,
इनका तो यही धंधा है!
कह,मुंह मोड़ लेते हैं।
लेकिन कोई यह नहीं सोचता
कि आखिर यह भिखारी!
भीख क्यों मांगता है?
इनकी क्या मजबूरी है
यदि मजबूरी है तो-
किसने इन्हें मजबूर किया?
भीख मांगने पर!
कोई दया नहीं दिखलाता क्यों इनपर?
क्या ये दया के पात्र नहीं हैं?
एक इंसान,
दूसरे इंसान से ही भीख मांगता है!
यह इंसानियत का कैसा स्वरूप है?
जिसके बोझ तले दबे हैं भिखारी
क्या आपने किसी जानवर को-
दूसरे जानवर से भीख मांगते देखा है?
हमसे ज्यादा तो वो ही खुशनसीब हैं,
जिनमें ना कोई अमीर ना गरीब है।

नवाब मंजूर

लेखकमो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें :

बच्चों में बढ़ रही है नशे की लत | Nashe Ki Lat Par Kavita

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *