बोले कोयलिया ( Bole koyaliya ) कोयलिया कुहू कुहू बोले। वन उपवन में लता कुंज में, मधुरस के घट खोले। पवन बह रही है बासंती, करती जनरुचि को रसवंती, बौराई अमराई सारी, मादकता सी घोले। हुई मंजरित डाली डाली, मुग्ध भाव से देखे माली, एक-एक तरु की फलता को, मन ही मन में तोले। … Continue reading बोले कोयलिया | Bole koyaliya
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