बोले कोयलिया | Bole koyaliya
बोले कोयलिया
( Bole koyaliya )
कोयलिया कुहू कुहू बोले।
वन उपवन में लता कुंज में,
मधुरस के घट खोले।
पवन बह रही है बासंती,
करती जनरुचि को रसवंती,
बौराई अमराई सारी,
मादकता सी घोले।
हुई मंजरित डाली डाली,
मुग्ध भाव से देखे माली,
एक-एक तरु की फलता को,
मन ही मन में तोले।
वन में कोयल अलख जगाती,
कुहुक कुहुक कर यही बताती,
प्यार-मधुरता की धारा में,
अपना कल्मष धो ले।
कोयलिया कुहू कुहू बोले।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)