छलावा ( Chalawa ) रंगीन दुनिया में सबका अपना -अपना पहनावा है, कहीं सच में झूठ,कहीं झूठ में सच का दिखावा है। बेमतलब ख़्वाबों से रिश्ते गढ़ता रहता है कोई मन को तह रख तर्कों से कोई करता छलावा है। आवारा बादलों की ज़द कहाँ समझ पाया दिल ठिकाना और भी इनका बरखा के … Continue reading छलावा | Chalawa
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