छलावा | Chalawa

छलावा

( Chalawa ) 

 

रंगीन दुनिया में सबका अपना -अपना पहनावा है,
कहीं सच में झूठ,कहीं झूठ में सच का दिखावा है।

बेमतलब ख़्वाबों से रिश्ते गढ़ता रहता है कोई
मन को तह रख तर्कों से कोई करता छलावा है।

आवारा बादलों की ज़द कहाँ समझ पाया दिल
ठिकाना और भी इनका बरखा के अलावा है।

बेकार पुराने जज्बातों की कद्र नहीं बाजार में
नयी दिलकश चीज़ों की कीमतों में बढ़ावा है।

ज़िन्दगी के फलसफे तू भी समझ ले गौर से
दिल से जुड़कर पुकारे ऐसा ना कोई बुलावा है।

 

शैली भागवत ‘आस’
शिक्षाविद, कवयित्री एवं लेखिका

( इंदौर ) 

यह भी पढ़ें :-

आँधियाँ | Aandhiyan

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *