Kavita | चित आदित्य

चित आदित्य  ( Chit Aditya ) देखो ! उसकी सादगी, गीली मिट्टी से ईंट जो पाथ रही। लिए दूधमुंहे को गोद में, विचलित नहीं तनिक भी धूप में। आंचल से ढंक बच्चे को बचा रही है, रखी है चिपकाकर देह से- ताकि लगे भूख प्यास तो सुकुन से पी सके! खुद पाथे जा रही है। … Continue reading Kavita | चित आदित्य