विध्वंस | शैलेन्द्र शांत

विध्वंस आदमी का फटे चाहे आसमान काकलेजाविध्वंस ही होता है अपमान बहुतदोहन भरपूरउपेक्षा अतिवादे अनवरत झूठेअहर्निश लूटहोती है भारी टूट-फूटकहीं, तब फटता है कलेजा टूट जाता है जब धैर्यप्रकृति काचाहे आदमी का विध्वंस ही होता है ( Destruction was published in the reputed magazine: The Hans. ) Destruction Whether it’s the heart of a manOr … Continue reading विध्वंस | शैलेन्द्र शांत