धूप ऐसी पड़ी मुह़ब्बत की

धूप ऐसी पड़ी मुह़ब्बत की धूप ऐसी पड़ी मुह़ब्बत की।खिल उठी हर कली मुह़ब्बत की। शम्अ़ नफ़रत की बुझ गई फ़ौरन।बाद जब भी चली मुह़ब्बत की। उड़ गए होश सब रक़ीबों के।बात ऐसी उड़ी मुह़ब्बत की। बाद मुद्दत के आज देखी है।उनके रुख़ पर हंसी मुह़ब्बत की। लाख शोअ़ले उठे बग़ावत के।पर न सूखी नदी … Continue reading धूप ऐसी पड़ी मुह़ब्बत की