दो और दो पांच | लघुकथा सह आत्मकथा

कहते है कि मजाक में भी कहावते सच हो जाती है। सोचो कैसे चलो चलते है लगभग 5 वर्ष पहले जब मेरे ससुराल में मेरी पत्नी के बड़े पापा के यहां बड़े लड़के की शादी थी। हमारे यहां शादी के रीति रिवाजों में मंडप को कच्चे धागे से सुतना या कहो तो कच्चे धागे से … Continue reading दो और दो पांच | लघुकथा सह आत्मकथा