कहते है कि मजाक में भी कहावते सच हो जाती है। सोचो कैसे चलो चलते है लगभग 5 वर्ष पहले जब मेरे ससुराल में मेरी पत्नी के बड़े पापा के यहां बड़े लड़के की शादी थी।

हमारे यहां शादी के रीति रिवाजों में मंडप को कच्चे धागे से सुतना या कहो तो कच्चे धागे से चारो ओर से पांच बार घुमाकर बांधा जाना एक परम्परा है।

लेकिन यह कार्य केवल घर परिवार एवं रिश्तेदार के दीदी जीजाजी या बुआ फूफाजी ही किया करते है ऐसी प्रथा है।
उस समय बड़े पापा के यहां दूल्हा की बड़ी बहन गर्भवती थी जिस कारण उसने यह प्रथा निभाने से मना कर रखा था। और उसी समय मेरी भी पत्नी गर्भवती थी। और परिवार के अन्य बेटी दामाद आदि का समय पर शादी में आना भी पक्का नहीं था।

अब सोचने वाली बात यह रही कि शादी के कार्यक्रम में छोटे छोटे रीति रिवाज करे तो करे कौन…मेरी भी शादी बीते एक वर्ष पहले होने के कारण और छिंदवाड़ा जिले में कैसी प्रथा रीति रिवाज के अनुसार शादी होती है। देखने का मेरा भी बहुत मन और जुनून था। शादी का समय माह मई में होने और मेरी स्कूल में गर्मी की छुट्टियां होने के कारण मैं शादी के कार्यक्रम करने से मना नहीं कर पाया।

शादी के घर में परिवार रिश्तेदारों का जमा होना हसीं मजाक और ठिठोली करना पुराने शादी के गाने गाना शहनाई वाले बाजे पर नाचना एक अलग ही आनंद है।

अब सीधे चलते है मंडप के दिन और मंडप के कार्यक्रम में हल्दी खेलना होली खेलना माता पूजन करने जाना और स्थानीय और गोंडी गाने के धुनों पर बिंदास नाचना बहुत मजा आता है।

शादी में छोटे छोटे कार्यक्रमों के बाद शाम में मंडप को कच्चे धागों से सुतना कहो या बांधना कहो या लपेटना कहो एक रिवाज है। लेकिन शादी में कोई भी कार्यक्रम को जोड़े से ही किया जाता है।

मंडप बांधने के कार्यक्रम को किया जाना था मैं तैयार तो हो गया लेकिन मेरे साथ मंडप में पूजन की थाली को लेकर घूमने के लिए मेरी पत्नी आयी थी लेकिन उसके गर्भवती होने के कारण थोड़ी घबराहट हो रही थी।तो उसकी जगह अब मेरे साथ पूजन की थाली लेकर घूमे कौन तो…परिवार के सब लोग मजाक करने लगे की मेरी साली जिसका नाम पूजा है वह मेरे साथ थाली लेकर घूमेगी।

मेरी साली पूजा भी दिलदार होने के साथ साथ हसीं मजाक करने में माहिर थी उसने भी उसकी दीदी की समस्या को तो देखा था लेकिन झट से खड़ी होकर बोली की हा मैं पूजा मेरे जीजाजी के साथ पूजन की थाली लेकर घूमने के लिए तैयार हूं।

हंसी मजाक तो चल ही रही थी लेकिन सच में समय ही ऐसा था कि मेरी पत्नी को अचानक घबराहट होने के कारण मेरी साली पूजा को ही मंडप में कच्चा धागा सुतने के लिए पूजन की थाली लेकर मेरे साथ जोड़े से घूमने का कार्य करना पड़ा।

मजाक मजाक में परिवार के बड़े बुजुर्गो के समक्ष पूजन विधि सम्पन्न होने लगी और शादी के लोकगीतों को बड़ी अम्माओं ने जोर जोर से गाने गाए। और हमने मंडप को पांच बार सुतने का कार्य पूर्ण किया।

यहां पर एक कहावत सच हुई कि ‘साली होती है आधी घरवाली’ सब कहने लगे की आज पूजा ने कर दिखाया और जीजाजी के साथ पांच फेरे भी ले लिए हंसी मजाक होने के साथ ही साथ मंडप का कार्यक्रम भी संपन्न हुआ।

परिवार में जब जब कही कभी भी हंसी मजाक कोई बात होती है तो पूजा मेरी साली मजाक में झट से कहती है की मैंने भी जीजाजी के साथ पांच फेरे लिए है।

इसलिए मेरा भी जीजाजी पर आधा अधिकार है।और मेरी बारी आती है तो मैं भी उसी मजाकिए अंदाज में झट से कहता हूं की तूने भी तो मेरे साथ पांच फेरे लिए है। और इस तरह घर परिवार में हंसी मजाक का सिलसिला यूं ही चलता रहता है।

इस बीच दो वर्ष के बाद पूजा की भी शादी हुई और पूजा की शादी में मुझे और मेरी पत्नी को फिर से सभी कार्यक्रम को बड़े हर्षोल्लास से करने का फिर मौका मिला।

एक बात तो बहुत अच्छी रही की पूजा के पति मेरे साडू भाईसाहब भी बहुत अच्छे स्वभाव के है।जिनको हंसी मजाक से कोई भी गीला शिकवा नहीं रहता थोड़ी थोड़ी हंसी मजाक वो भी किया करते है।

समय यूं ही बीतता गया और लगभग पांच वर्ष के बाद हम सब फिर परिवार के दूसरे बड़े पापा के पोते की शादी कार्यक्रम में आए। शादी के खुशहाल माहौल में अकसर अजनबी लोगो से जान पहचान भी बढ़ती है।

अब हम शादी वाले घर में गए तो बहुत दिनो में मिलने वालो से मुलाकात होती है। कुछ अजनबी भी मिले जिनसे पहचान हुई। परिवार में हमेशा हंसी मजाक का सिलसिला फिर शुरू हुआ।

शादी में मैं मेरी पत्नी और बेटी तथा पूजा उसका बेटा और मेरे साडू भाईसाहब एवं मेरी सासूजी आदि हम सब शादी में गए तो अन्य परिवारिक मेहमान एक दूसरे से पहचान होने लगी।

शायद अब कहावत का सच होने का समय आ गया था। अब देखिए परिवार में हंसी मजाक में परिचय कैसे होता है..

मेरी पत्नी प्रिया ने मजाकिए अंदाज में मेरी ओर इशारा करते हुए परिचय दिया कि ऐ मेरे इधर से है। और मैने भी कहा कि प्रिया मेरी पत्नी है। उसी बीच झट से पूजा ने भी हंसी का अंदाज और ठिठोली करते हुए अपने पति की ओर इशारा करते हुए परिचय दिया कि मैं केवल इनकी पत्नी तो हूं और हम दोनो मैं और मेरे साडू भाईसाहब के तरफ हाथ दिखाते हुए कहा की ऐ दोनो सिर्फ मेरे है।

पूजा की बात सुनकर परिवार के सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे
और इस तरह हंसी मजाक का सिलसिला कुछ समय तक यूं ही चलते रहा।

इस तरह से ‘दो और दो पांच’ की कहावत साबित हुई जानो कैसे…
जैसे प्रिया और मैं हम दो (1+1=2)
और पूजा के अनुसार उसके हम दो याने (1+2=3)
अब हो गए ना हम दो और मेरे दो याने ‘दो और दो पांच’ बराबर…।

इस तरह समय समय पर परिवार और रिश्तेदारों में मिलना जुलना पारिवारिक कार्यक्रमों में इकट्ठे होना एकता और संगठन का परिचय है। इस तरह एक परिवार में सभी रिश्तेदारों को समाजिक कार्यक्रम में शामिल होकर अपनत्व का परिचय देना चाहिए। और एक समाज को भाईचारा और पारिवारिक अपनापन का बल मिलता है। जिससे परिवार एकजुट होकर हमेशा मिलनसार रहता है। इस तरह परिवार समाज का मान सम्मान निरंतर बना रहता है।
जय कुटुंब…जय समाज…

हरिदास बड़ोदे ‘हरिप्रेम’
शिक्षाविद/गीतकार/लोकगायक/समाजसेवी
आमला, जिला- बैतूल (मध्यप्रदेश)

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