नजरों का धोखा | Doha nazron ka dhokha

नजरों का धोखा ( Nazron ka dhokha )   नजरें  धोखा  खा  गई, कैसी  चली  बयार। अपनापन भी खो गया, गायब सब संस्कार।   नजरों का धोखा हुआ, चकाचौंध सब देख। भूल गए प्रीत पुरानी, खोया ज्ञान विवेक।   नजरों का धोखा हमें, पग पग मिला अपार। धूल  झोंके  नयनों  में, वादों  की  भरमार।   … Continue reading नजरों का धोखा | Doha nazron ka dhokha