डोर | hindi poem on life

डोर ( Dor ) रंग बिरंगी पतंग सरीखी, उड़ना चाहूं मैं आकाश। डोर प्रिये तुम थामे रखना, जग पर नहीं है अब विश्वास।।   समय कठिन चहुं ओर अंधेरा, घात लगाए बैठा बाज़। दिनकर दिया दिखाये फिर भी, खुलता नहीं निशा का राज।।   रंगे सियार सरीखे ओढ़े, चम चम चमके मैली चादर। पा जायें … Continue reading डोर | hindi poem on life