एक मां की बेबसी | Kavita

एक मां की बेबसी ( Ek Maa Ki Bebasi ) विकल्प नहीं है कोई देखो विमला कितना रोई सुबककर दुबककर देख न ले कोई सुन न ले कोई उसकी पीड़ा अनंत है समाज बना साधु संत है जानकर समझकर भी सब शांत हैं किया कुकृत्य है शोहदों ने जिनके बाप बैठे बड़े ओहदों पे सुधि … Continue reading एक मां की बेबसी | Kavita