विकल्प नहीं है कोई
देखो विमला कितना रोई
सुबककर दुबककर
देख न ले कोई
सुन न ले कोई
उसकी पीड़ा अनंत है
समाज बना साधु संत है
जानकर समझकर भी सब शांत हैं
किया कुकृत्य है शोहदों ने
जिनके बाप बैठे बड़े ओहदों पे
सुधि ले रहा न कोई
आखिर ऐसा कब तक होगा
एक बेटी की जिंदगी से हुआ खिलवाड़
रौंदी गई सरेराह
इज्जत हुई तार तार
विमला सोच रही छोड़ने को घर बार
ले बेटी को जाए कहां?
कोई ऐसी जगह भी नहीं जानती
ना ही किसी ऐसे ग्रह का ही है पता
जहां किसी बेटी के साथ ऐसा नहीं होता!
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