ग़र ना होती मातृभाषा | Matribhasha Diwas Par Kavita
ग़र ना होती मातृभाषा ( Gar na hoti matribhasha ) सोचो सब-कुछ कैसा होता, ग़र ना होती मातृभाषा ।। सब अज्ञानी होकर जीते जग-जीवन का बौझा ढोते, किसी विषय को पढ पाने की कैसे पूरी होती अभिलाषा।। कैसे अपना ग़म बतलाते कैसे गीत खुशी के गाते, दिल की दिल में ही … Continue reading ग़र ना होती मातृभाषा | Matribhasha Diwas Par Kavita
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