दिखती नहीं | Ghazal Dikhti Nahi

दिखती नहीं ( Ghazal Dikhti Nahi )   ग़ालिबन उनके महल से झोपड़ी दिखती नहीं I इसलिए उनको शहर की मुफ़लिसी दिखती नहीं II लाज़िमी शिकवे शिकायत, ग़ौर तो फरमा ज़रा I आख़िरश उनकी तुम्हे क्यों बेबसी दिखती नहीं I पेट ख़ाली शख्त जेबें पैरहन पैबंद तर I फिर उसे संसार में कुछ दिलकशी दिखती … Continue reading दिखती नहीं | Ghazal Dikhti Nahi