Ghazal | तुझसे मुख्फी करते हुए भी डर लगता है
तुझसे मुख्फी करते हुए भी डर लगता है ( Tujhse Mukhphi Karte Hue Bhi Dar Lagta Hai ) तुझसे मुख्फी करते हुए भी डर लगता है सोज़-ए-दीवानगी क्यों मुझे खर लगता है जहाँ देखो वहीँ बैठ जाता हूँ नाजाने क्यों देखने में तो यह अपना ही घर लगता है बे-सब्र बचाए जा … Continue reading Ghazal | तुझसे मुख्फी करते हुए भी डर लगता है
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