गिले-शिकवे की रीत पहर-दर-पहर वो मुझे शिद्दत से याद आते रहे, वो क्या जाने ये चांँद-सितारे किस कदर उनकी यादों के नश्तर मेरे सीने में चुभाते रहे, बहुत चाहा था कि भूल जाएं उस बेवफ़ा को, मगर ख़्याल उनके दिल से निकलते ही नहीं, बनाकर आशियाना इस कदर वो दिल में हलचल मचाते रहे, शब-ए-हिज्रा … Continue reading गिले-शिकवे की रीत
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